‘राजीव गाँधी मारे गए!’ बुश हाऊस की पाँचवी मंज़िल पर स्थित हमारे ऑफ़िस में एक आवाज़ गूँजी.
वह 21 मई 1991 की शाम थी और लंदन में शायद पौने सात बज रहे थे. मैं बस मिनट भर पहले अपने डैस्क पर लौटी थी. ‘यह कैसे हो सकता है?’ मैंने ख़ुद से कहा. ‘राजीव तो मद्रास में कहीं चुनाव